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8वां वेतन आयोग 2026: केंद्र सरकार कर्मचारियों के लिए नई उम्मीदें और संभावित फिटमेंट फैक्टर

मुद्रास्फीति के आंकड़ों के आधार पर 8वें वेतन आयोग में वेतन में कितनी बढ़ोतरी हो सकती है? जानिए फिटमेंट फैक्टर, संभावित वेतन संरचना और सरकारी घोषणाएं।

प्रस्तावना

भारत में सरकारों द्वारा लगभग हर दस (10) वर्ष बाद एक वेतन आयोग (Pay Commission) का गठन किया जाता है, ताकि केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों (Central Government employees & pensioners) की वेतन और भत्तों (allowances) की पुनर्समीक्षा हो सके। वर्तमान में 7वाँ वेतन आयोग 1 जनवरी 2016 से लागू है, और उसकी अवधि दिसंबर 2025 तक मानी जा रही है। अब 8वाँ वेतन आयोग (8th Pay Commission) की घोषणा हो चुकी है।

वे वेतन आयोग इस दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं कि वे न केवल कर्मचारियों की क्रय शक्ति (purchasing power) को संरक्षित करते हैं, बल्कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वेतन वृद्धि वित्तीय स्थिरता एवं बजटीय संतुलन को भी बाधित न करे।

इसमें हम निम्न बिंदुओं पर विचार करेंगे:

  1. 8वाँ वेतन आयोग की स्थिति और घोषणाएँ
  2. फिटमेंट फैक्टर क्या है, और 7वें आयोग में कैसे निर्धारित हुआ था
  3. पिछले दस वर्षों की मुद्रास्फीति (CPI आधारित) का विश्लेषण
  4. तर्कसंगत फिटमेंट फैक्टर क्या होना चाहिए
  5. कुछ संभावित चुनौतियाँ और सुझाव

1. 8वाँ वेतन आयोग की स्थिति और सरकारी घोषणाएँ

1.1 आयोग की स्वीकृति

  • केन्द्र सरकार ने 16 जनवरी 2025 को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) के गठन की स्वीकृति दी है।
  • यह स्पष्ट किया गया है कि इस आयोग की सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से लागू हो सकती हैं।
  • अभी तक, आयोग की अभी तक Terms of Reference (TOR) या विस्तृत नियमावली सार्वजनिक रूप से जारी नहीं हुई है।

1.2 मीडिया एवं प्रयुक्त घोषणाएँ

  • एक JCM (स्टाफ साइड) सदस्य ने कहा है कि “कम से कम 2.86” का फिटमेंट फैक्टर अपेक्षित है, यह देखते हुए कि यह बदलाव लगभग दस वर्षों के बाद हो रहा है। NDTV Profit
  • विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया है कि फिटमेंट फैक्टर 2.28 से 2.86 के बीच हो सकता है। India Today+4India TV News+4India Today+4
  • कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि यदि फैक्टर अधिक (उच्च संख्या) हो, तो वेतन में 40‑50% की बढ़ोतरी संभव है। ABP Live+2India TV News+2
  • अन्य मीडिया स्रोतों में यह विचार किया गया है कि सरकार आर्थिक दबाव और वित्तीय संसाधन को ध्यान में रखते हुए मध्यम फैक्टर को चुन सकती है। mint+2The Financial Express+2

1.3 पूर्व आयोगों में फिटमेंट फैक्टर की भूमिका

  • 7वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर 2.57 रखा गया था।
  • 6वें वेतन आयोग (2006 आधारित) में फिटमेंट फैक्टर लगभग 1.86 था।
  • 7वें आयोग ने पुराने Basic + DA (Dearness Allowance) का समेकन (merge) कर उसके आधार पर नया वेतन निर्धारण किया था।

वर्तमान समय में, सरकार ने अभी तक कोई कार्यालय आदेश (official order) जारी नहीं किया है, जिससे यह स्पष्ट हो कि फैक्टर क्या होगा। इसलिए, मैंने अनुमानों एवं तर्कों से सही दिशा देने की कोशिश की है ।

2. फिटमेंट फैक्टर — अवधारणा एवं मापदंड

2.1 फिटमेंट फैक्टर क्या है?

“फिटमेंट फैक्टर” एक गुणक (multiplier) है, जिसे वर्तमान मूल वेतन (Basic Pay) या (Basic + DA) के आधार पर नए वेतन की गणना करने में उपयोग किया जाता है।
सरल शब्दों में:

नया वेतन = वर्तमान मूल वेतन × फिटमेंट फैक्टर

इसमें अन्य भत्ते और संशोधित DA / भत्तों आदि को बाद में जोड़ लिया जाता है।

2.2 7वें आयोग में कैसे लागू किया गया

7वें आयोग ने पुराने Basic + DA (DA को मूल वेतन में मिला कर) को आधार माना और उस पर 14.22% तक की वास्तविक वृद्धि जोड़ी। इस प्रक्रिया के कारण फिटमेंट फैक्टर 2.57 का मान मिला।

उदाहरण स्वरूप: यदि किसी कर्मचारी का Basic 10,000 था, और DA (125%) जोड़ने पर वह 22,500 हो जाता है, तो उसपर ~14.22% वृद्धि करके नया वेतन ~25,700 हुआ, और इसलिए फैक्टर ≈ 2.57 बना।

2.3 फिटमेंट फैक्टर निर्धारण में प्रमुख कारक

निम्न विशेषताएँ फैक्टर तय करने में विचार की जाती हैं:

  • मुद्रास्फीति / क्रय शक्ति (Inflation / Cost of Living): पिछले वर्षों में कीमतों की वृद्धि को संतुलित करना
  • सरकारी वित्तीय स्थिति / बजट उपलब्धता
  • मानव संसाधन (HR) अभिसरण — वेतन अंतर नहिं आकाशगामी हो
  • अन्य भत्तों, DA संरचना, और भविष्य की वृद्धि दरों का ध्यान
  • पेंशन धारक (retirals) — पेंशनभोगियों को भी समान न्याय

इसलिए, फिटमेंट फैक्टर केवल सूत्र नहीं, बल्कि आर्थिक, वित्तीय और सामाजिक संतुलन का परिणाम है।

3. पिछले दस वर्षों की मुद्रास्फीति (Inflation) — विश्लेषण

फिटमेंट फैक्टर तय करने में सबसे महत्वपूर्ण सच है: पिछले वर्षों में मूल्य स्तरों में वृद्धि। हम इसे CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) आधारित वार्षिक दरों के आधार पर देख सकते हैं।

नीचे भारत सरकार की प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा जारी आंकड़ों की एक सारणी है जो 2014 से 2025 तक मासिक/वार्षिक CPI आधारित मुद्रास्फीति दर दिखाती है। Press Information Bureau
उदाहरण स्वरूप:

वर्ष कुछ महीनों में वार्षिक मुद्रास्फीति (%)
2015 ~5.19 – 5.61% Press Information Bureau+1
2016 ~4.83% – 6.07% मॉडल दरें Press Information Bureau+1
2017 ~1.46% – 5.21% विविध मूल्य Press Information Bureau+1
2018 ~2.11% – 5.07% Press Information Bureau+1
2019 ~1.97% – 7.35% (महीनों पर निर्भर) Press Information Bureau+1
2020 ~5.84% – 7.61% (COVID एवं अन्य प्रभाव) Press Information Bureau+1
2021 ~4.06% – 6.30% Press Information Bureau+1
2022 ~5.72% – 7.79% (उच्च मुद्रास्फीति) Press Information Bureau+1
2023 ~4.70% – 7.44% Press Information Bureau+1
2024 ~3.60% – 6.21% Press Information Bureau+1
2025 (प्रारंभ) ~3.34% (मार्च) और ~3.16% (अप्रैल) Indian Government Scheme+2Press Information Bureau+2

इन दरों को वाँछित रूप से साधारण औसत या संयोजित औसत (geometric mean) में बदलकर देखा जा सकता है। यदि हम एक अनुमान करें कि इन वर्षों में औसत वार्षिक मुद्रास्फीति लगभग 5% रही हो, तो दस वर्ष में मूल्य स्तर लगभग (1.05)10=1.63 गुना हो गया होगा — यानी लगभग 63% की समेकित वृद्धि।

यह एक सामान्य गणना है, और वर्ष-वार भिन्नताएँ अधिक होंगी। लेकिन इससे यह स्पष्ट है कि यदि किसी कर्मचारी का वेतन 2016 में था, तो 2025 तक उसके खर्चों में लगभग 60‑70% तक की वृद्धि हो सकती है।

यदि वेतन वृद्धि इस आधार पर हो, तो केवल मुद्रास्फीति को कवर करने हेतु ही फिटमेंट फैक्टर कम‑से‑कम ~1.6 के आसपास होना चाहिए — लेकिन इस पर “वास्तविक वृद्धि” (real increase) जोड़ना आवश्यक है।

4. तर्कसंगत फिटमेंट फैक्टर क्या होना चाहिए?

अब, मुद्रास्फीति और पिछले आयोगों के अनुभवों को मिलाकर, हम एक तर्कसंगत प्रस्ताव तैयार कर सकते हैं।

4.1 मुद्रास्फीति आधारित आधार + वास्तविक वृद्धि

  • यदि मुद्रास्फीति के आधार पर 1.6 गुना होना चाहिए, तो उस पर 10‑15% वास्तविक वृद्धि जोड़ी जाए ताकि वेतन की “वास्तविक वृद्धि” (real increment) भी मिले।
  • इस तरह, फिटमेंट फैक्टर = 1.6 × (1 + 0.10 से 0.15) = लगभग 1.76 से 1.84 तक हो सकती है।
  • लेकिन चूंकि वेतन आयोगों में अक्सर “राउंड-ऑफ़” और अन्य भत्तों को जोड़ने की सम्भावना होती है, यह फैक्टर ~1.8 से 2.0 तक ऊँचा लिया जाना चाहिए।

4.2 अनुभव आधारित उपार्जन

  • कई रिपोर्ट और विश्लेषकों का मानना है कि संभव रेंज 2.28 से 2.86 तक हो सकती है।
  • यदि सरकार ने अधिकतम दबाव स्वीकार किया, तो 2.86 तक भी जा सकती है (जैसा JCM की मांग है)।
  • लेकिन सरकार बजटीय सीमाओं को देखते हुए मध्यम रेंज चुन सकती है, जैसे 2.2 से 2.5 तक।

4.3 सुझावित रेंज

मेरी राय में, एक न्यायसंगत और व्यवहारिक फिटमेंट फैक्टर लगभग 2.0 से 2.3 के बीच हो सकता है। यह ना तो अत्यधिक बोझ डालेगा, और न ही कर्मचारियों की अपेक्षाएँ पूरी तरह अनदेखी करेगा।

उदाहरण दें: वर्तमान न्यूनतम मूल वेतन (Basic) ₹18,000 हो, यदि फैक्टर 2.2 हो, तब नया Basic = ₹39,600। अन्य भत्ते (HRA, TA आदि) इससे ऊपर होंगे।

यदि सरकार अधिक “उदार” बने, तो 2.5 तक की ओर देख सकती है, लेकिन यह वित्तीय बोझ को बढ़ाएगा।

4.4 अन्य ध्यान योग्य बातें

  • फिटमेंट फैक्टर तय करते समय DA (Dearness Allowance) पुनर्स्थापन और भत्तों का समायोजन देखा जाना चाहिए।
  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि न्यूनतम वेतन (minimum wage) पर्याप्त ऊँचा हो ताकि वह जीवन व्यय को कवर करे।
  • पेंशनभोगियों पर भी समान प्रभाव देखें।
  • बजटीय खर्च (Expenditure burden) और सरकारी राजस्व (Revenue) संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए।

5. चुनौतियाँ एवं सुझाव

5.1 चुनौतियाँ

  • आर्थिक दबाव: यदि फैक्टर बहुत अधिक रखा गया, तो सरकार का वित्तीय भार बहुत बढ़ जाएगा।
  • भत्तों की पुनर्समीक्षा: केवल मूल वेतन बढ़ने से सभी भत्ते संतुलित नहीं होंगे, HRA, TA, अन्य भत्तों को भी पुनःदेखना होगा।
  • पेंशन वहेयोजन: पेंशनभोगियों के हित को भी समान प्राथमिकता देना।
  • अन्य कर्मचारियों एवं राज्य कर्मचारियों की अपेक्षाएँ: यदि केंद्रीय कर्मचारियों की वेतन वृद्धि बहुत अधिक हुई, अन्य क्षेत्रों की अपेक्षाएँ बढ़ सकती हैं।
  • रिआर की समस्या (Arrears issue): अगर आयोग को देर से लागू करना पड़े, वेतन व भत्ता अंतर (arrears) बहुत भारी हो सकते हैं।

5.2 सुझाव

  • आयोग की TOR (Terms of Reference) पारदर्शी हो, जिसमें मुद्रास्फीति, खर्च संरचना आदि स्पष्ट हों।
  • आयोग को एक मध्यम‑उचित रेंज की सिफारिश करनी चाहिए, न कि अत्यधिक या न्यून।
  • भत्तों (HRA, TA आदि) की पुनर्समीक्षा भी आयोग को करनी चाहिए।
  • पेंशनभोगियों का भी समुचित ध्यान रखा जाए।
  • वेतन बढ़ोतरी के साथ आर्थिक वृद्धि और राजस्व का संतुलन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
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